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यह मेरे द्वारा लिखी हुई नई कहानी है, पाठको & मित्रो इस कहानी के सात अध्याय है आपको कहानी अच्छी लगे तो प्रतिक्रिया जरूर दें.!

अध्याय-1 

ब्राह्मण उच्च कुलो में भारत बर्ष की संस्कृति का सम्मान रहा, जिसे धर्म, ग्रंथ, आचरण, सुविचार की वजह से श्रेष्ठ माना वेद-शास्त्रो ने..! 

कनिष्क का जन्म एक उच्च कुल ब्राह्मण गोत्र मथुरा मे हुआ, घर मे हर काम करने का समय, सलीका, व सुविधा,, "बच्चे कच्चे माटी के मटके होते है, जैसा देखते है वैसा ही सिखते है" अतएव पूरा घर संस्कारित होने की वजह से कनिष्क के भी विचार उच्च थे..! 

बचपन की गाडी चलते-2 जवानी की ओर बढी और गांव घर की बस्तियो से कनिष्क का परिचय होना शुरू हुआ, संसार की रीतियो को समझना भी शुरू किया..! 

कनिष्क के पिता गांव के 'बडे पुजारी' के नाम से प्रसिद्ध थे, पूरे गांव मे उनका अलग अदब था,, रमाकांत शास्त्री को केवल अपने पुत्र की सही शिक्षा से वास्ता था अतएव कनिष्क के प्रति उनका व्यवहार थोडा तीखा था..! 

कनिष्क भी उनसे दूर-2 रहता पर रात्रि मे उसे पुजारी जी के ही साथ सोना पडता, तब पुजारी जी उसे दूनिया की परंपराओं, वेद-ग्रंथो से परिचय करवाते, सुनते-2 कनिष्क सो जाता, परंतु सुबह की पहली पहर सूर्योदय से पहले जग के पुजारी जी के साथ स्नान, पूजा-पाठ ये सब बेमन उसे भी करना पडता..! 

घर की ठाठ-बाठ की देखरेख के लिए दो-चार काम करने वाले लगे ही रहते,, तरह-2 की पकवान अक्सर रूकमणी देवी बनाती ही रहती, दादा-दादी का अगाध प्रेम होता है पोते से, प्यार से कनिष्क उन्हे 'दद्दू' कहता, दादी धनवंति का स्वर्गबास हो चुका था..! 

दद्दू अक्सर कनिष्क को वो कहानियाँ सुनाते जिनसे उसके संस्कार सुंदर हो, प्रकृति के करीब रहकर नाती को अलौकिकता का आभास कराते,, कनिष्क को ये सब समझ न आता उसको अपने बचपने से प्यार था, और जब भी वक्त सबकी नजरो से चुराकर पाता अपने संगी-यारो के बीच बीता देता..! 

कनिष्क का वास्तविकता की ओर झुकावा था, जबकि घर का परिवेश रीति-रिवाजो से घिरा था, कनिष्क किसी से भेदभाव न करता, गरीब लडको के साथ भी उमंग के संग खुल के खेलता..! 
 

अध्याय-2

 

आज कनिष्क का हायर सेकण्डरी का परिणाम आना था, घर मे सबके मन मे काफी उत्सुकता थी, परिणाम आने पर पता चला कनिष्क तृतीय श्रेणी से उत्तीर्ण हुआ, सारे गांव मे सर्वाधिक अंक एक निम्न कुलीन लडके के आऐ थे, ये सब जान पुजारी जी गुस्से मे आग बबूला हो गये..!

घर पहुचते ही उन्होने रुकमणी देवी से पूछा- 'कहां है तुम्हारा लाडला.?

 

रूकमणी- क्यूं.? क्या हुआ, इतना गर्म क्यूं हो आप (अपने आंचल से हवा करते हुए उनके पास बैठ गई)

पुजारी जी- कुछ मत पूछो सारी दूनिया मे उसने मेरा नाम नीचा कर दिया (हाथ सर मे रखते हुए)

रूकमणी- साफ-2 कहो क्या हुआ? 
पुजारी जी- तुम्हारा बेटा तृतीय श्रेणी मे सिर्फ पास हुआ है
रूकमणी- (थोडा उदास होकर) पढता तो था मेरा बेटा

पूरे घर मे मानो जैसे मायूसी का वातावरण था, कनिष्क सुबह से घर नही आया था, सब उसी के इंतजार मे थे, दोपहर बीुती शाम आई, और धीरे-2 घनेरी रात होने लगी,, माँ को चैन न था बार-2 दरवाजे मे आकर सडक की तरफ देखती पर दूर-2 तक सिर्फ सूनापन था, व्याकुल माँ ने पुजारी जी को कोसना शुरू किया, तो पुजारी जी निकल पडे पुत्र की खोज मे..!

सारे गांव मे बात फैल गई, पर कनिष्क का कहीं कोई पता दूर-2 तक न चला, ऐसा करते-2 कई दिन से हफ्ते, हफ्ते से महीने, और साल होने को आया पर कनिष्क का पता न चला..!

दो साल के बाद दादा अमरकांत भी दूनिया छोड चले, बेटे के गम मे पुजारी जी का भरोसा भगवान से उठ ही गया था अब बिल्कुल अकेले और कमजोर हो गए थे, पूजा-पाठ से दूरी बना लिए खाली वक्त चिलम पीनी शुरू कर दिए, माँ भी खाने पीने का ध्यान न देती, पूरा घर अस्त-व्यस्त हो गया, लक्ष्मी दूर जाने लगी, घर मे दरिद्रता और गरीबी ने दस्तक देनी शुरू कर दी...!

 

 

 

 

कहानी 'संस्कार'

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